भारतीय संविधान की 12 अनुसूचियां: पूरी जानकारी | Meaning, Importance & Role

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भारतीय संविधान समय के साथ विकसित हुआ है। मूल रूप से 8 अनुसूचियों से शुरू होकर, अब इसमें 12 अनुसूचियां हैं। यह ब्लॉग पोस्ट इन अनुसूचियों, उनके महत्व और भारतीय शासन प्रणाली में उनकी भूमिका पर प्रकाश डालता है।

(1) प्रथम अनुसूची:

  • इसमें राज्यों के नाम और उनकी सीमाओं का उल्लेख है।
  • इसमें संघ राज्य क्षेत्रों के नाम और उनकी सीमाओं का उल्लेख है। अनुसूची 1 का संबंध अनुच्छेद 1 और 4 से है।

(2) दूसरी अनुसूची: इसमें वेतन-भत्ते, परिलब्धियों, विशेषाधिकारों का प्रावधान है।

दूसरी अनुसूची में निम्न के वेतन-भत्तों का उल्लेख है:

  • भारत के राष्ट्रपति
  • राज्य के राज्यपाल
  • लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष
  • राज्यसभा के सभापति और उपसभापति
  • राज्य विधानसभाओं के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष
  • राज्य विधान परिषदों के सभापति और उपसभापति
  • सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य और अन्य न्यायाधीश
  • उच्च न्यायालय के मुख्य और अन्य न्यायाधीश
  • भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG)

अनुसूची 2 का संबंध अनुच्छेद 59(3), 65(3), 75(6), 97, 125, 148(3), 158(3), 164(5), 186 और 221 से है।

ध्यातव्य बिंदु:

  • राष्ट्रपति, राज्यसभा के सभापति, उपसभापति, लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य और अन्य न्यायाधीशों तथा नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के वेतन-भत्ते भारत की संचित निधि पर भारित होते हैं।
  • राज्यपाल, विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, विधान परिषद के सभापति और उपसभापति, उच्च न्यायालय के मुख्य और अन्य न्यायाधीशों के वेतन राज्य की संचित निधि पर भारित होते हैं।
  • राज्यपाल और उच्च न्यायालय के मुख्य और अन्य न्यायाधीशों को वेतन राज्य की संचित निधि से जबकि पेंशन भारत की संचित निधि से दी जाती है।

(3) तीसरी अनुसूची: इसमें शपथ (प्रतिज्ञान) के प्रारूप का उल्लेख है।

अनुसूची 3 में निम्न की शपथ का प्रारूप है:

  • सांसदों (MP) की शपथ
  • विधायकों (MLA) की शपथ
  • संघ के मंत्रियों की शपथ
  • राज्य के मंत्रियों की शपथ
  • प्रधानमंत्री की शपथ
  • मुख्यमंत्री की शपथ
  • सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की शपथ
  • उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की शपथ
  • नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की शपथ

अनुसूची 3 का संबंध अनुच्छेद 75(4), 84, 99, 124(6), 148(2), 164(3), 173, 188 और 219 से है।

ध्यातव्य बिंदु:

  • अनुसूची 3 में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यपाल की शपथ का प्रारूप नहीं मिलता, इनकी शपथ का प्रारूप क्रमशः अनुच्छेद 60, 69 और 159 में मिलता है।
  • लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष तथा विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में शपथ नहीं लेते हैं, वे क्रमशः सांसद और विधायक के रूप में शपथ लेते हैं।

(4) चौथी अनुसूची: इसमें राज्यसभा की सीटों के आवंटन का प्रावधान है। राज्यसभा की सीटों का आवंटन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 1971 की जनसंख्या के आधार पर होता है। राज्यसभा की अधिकतम सीटें 250 हैं, वर्तमान में 245 हैं।

  • राज्यसभा (245)
    • निर्वाचित (233) – 28 राज्यों से (225) और 3 केन्द्रशासित प्रदेशों से (8) (अनुच्छेद 80) यह प्रावधान आयरलैंड से लिया गया है।
    • मनोनीत (12) – राष्ट्रपति द्वारा साहित्य, विज्ञान, कला, समाजसेवा के आधार पर
  • उत्तर प्रदेश (31), महाराष्ट्र (19), तमिलनाडु (18), बिहार (16), राजस्थान (10), ओडिशा (10), दिल्ली (3), पुडुचेरी (1), जम्मू-कश्मीर (4)
  • 1954 में राज्य परिषद का नाम बदलकर राज्यसभा कर दिया गया। अनुसूची 4 का संबंध अनुच्छेद 4(1) और 80(2) से है।
  • राज्यसभा में मनोनीत होने वाले प्रथम राजस्थानी नारायण सिंह माणकलाव थे।

(5) पांचवी अनुसूची: इसमें अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण से संबंधित प्रावधान हैं। जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन संचालन हेतु “जनजातीय सलाहकार परिषद” का गठन राष्ट्रपति द्वारा, राज्यपाल के परामर्श से किया जाता है। जनजातीय सलाहकार परिषद में अधिकतम 20 सदस्य होते हैं, जिसमें से तीन-चौथाई सदस्य जनजातीय क्षेत्रों के विधायक होते हैं। जनजातीय सलाहकार परिषद, जनजातियों के कल्याण और उनके विकास हेतु योजना बनाने का कार्य करती है। किसी भी क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र का दर्जा राष्ट्रपति द्वारा दिया जाता है। अनुसूची 5 का संबंध अनुच्छेद 244(1) से है।

(6) छठी अनुसूची: असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में उपबंध। इन राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों में प्रशासन के संचालन हेतु “स्वायत्त (प्रादेशिक) जिला परिषद” का गठन राज्यपाल द्वारा किया जाता है। स्वायत्त जिला परिषद में अधिकतम 30 सदस्य होते हैं, जिसमें से 26 निर्वाचित और 4 राज्यपाल द्वारा मनोनीत होते हैं। अनुसूची 6 का संबंध अनुच्छेद 244(2) और 275 से है।

(7) सातवीं अनुसूची: संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची के संदर्भ में राज्य और केंद्र के मध्य शक्तियों का विभाजन (पृथक्करण)।

  • शक्तियों का विकेन्द्रीकरण:
    • संघ सूची: 1935 के अधिनियम में 59 विषय, मूल संविधान में 97 विषय, वर्तमान में 98 विषय। (केंद्र सरकार कानून बनाती है।)
    • राज्य सूची: 1935 के अधिनियम में 54 विषय, मूल संविधान में 66 विषय, वर्तमान में 59 विषय। (राज्य सरकार कानून बनाती है।)
    • समवर्ती सूची: 1935 के अधिनियम में 36 विषय, मूल संविधान में 47 विषय, वर्तमान में 52 विषय। (केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं, टकराव की स्थिति में केंद्र का कानून मान्य होता है।)

संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची का उल्लेख अनुच्छेद 246 में है, अर्थात अनुसूची 7 का संबंध अनुच्छेद 246 से है। 42वें संविधान संशोधन 1976 द्वारा 5 विषयों को राज्य सूची से हटाकर समवर्ती सूची में रखा गया (शिक्षा, वन-वन्य जीव, बाट एवं माप तौल, न्याय प्रशासन, जनकल्याण और परिवार नियोजन)।

  • संघ सूची (कनाडा से): रक्षा, संचार, विदेशी मामले, परमाणु ऊर्जा, युद्ध-शांति, सशस्त्र बल, रेलवे, विदेशी ऋण, मुद्रा, RBI, CBI, बैंकिंग, बीमा, जनगणना, नागरिकता, मूल अधिकार, बंदरगाह, सीमा शुल्क, निर्यात शुल्क, अंतरिक्ष, लॉटरी, शेयर बाजार, सेवा कर, आयकर, निगम कर, GST, UPSC, प्रत्यर्पण, संधि-करार, डाक और तार, विदेशी व्यापार, अंतर्राज्यीय संगरोध इत्यादि।
  • राज्य सूची: कृषि, सिंचाई, पशुपालन, भूमिकर, सिंचाई कर, पथकर, राज्य पुलिस, जेल प्रहरी, GRP, स्थानीय स्वशासन (पंचायतीराज, नगरपालिकाएँ), कृषि आयकर, गैस, विद्युत कर, राज्य लोक सेवा आयोग, बाजार-मेले, शराब कर (आबकारी कर), मनोरंजन कर, लोक व्यवस्था, स्वास्थ्य, सट्टा (जुआ) इत्यादि।
  • समवर्ती सूची (ऑस्ट्रेलिया से): शिक्षा, वन-वन्यजीव, बाट एवं माप तौल, न्याय प्रशासन, जनकल्याण-परिवार नियोजन, तलाक, जन्म-मृत्यु पंजीकरण, समाचार पत्र-पत्रिकाएँ, जनसंख्या, कारखाने, मजदूर यूनियन, ऊर्जा, सामाजिक-आर्थिक नियोजन, IPC, CrPC, स्वच्छता, औषधालय, विद्युत, कीमत नियंत्रण इत्यादि।

ध्यातव्य बिंदु: अवशिष्ट सूची का प्रावधान कनाडा से लिया गया है। 1935 के अधिनियम में अवशिष्ट विषय गवर्नर (वायसराय) के हाथों में थे, वर्तमान में अवशिष्ट सूची पर कानून संसद (केंद्र सरकार) बनाती है। अवशिष्ट सूची का उल्लेख अनुच्छेद 248 में है। साइबर क्राइम अवशिष्ट सूची का विषय है।

(8) आठवीं अनुसूची: इसमें संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त भाषाओं की सूची है। मूल रूप से इसमें 14 भाषाएँ थीं, वर्तमान में इसमें 22 भाषाएँ हैं।

  • 14 मूल भाषाएँ: मलयालम, तेलुगु, तमिल, उड़िया, संस्कृत, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली, असमिया, पंजाबी, उर्दू, हिंदी, कश्मीरी।
  • संशोधन:
    • 21वें संविधान संशोधन 1967: सिंधी
    • 71वें संविधान संशोधन 1992: कोंकणी, मणिपुरी, नेपाली
    • 92वें संविधान संशोधन 2003: बोडो, डोगरी, मैथिली, संथाली
  • अनुसूची 8 का संबंध अनुच्छेद 344(1) और 351 से है।
  • 6 शास्त्रीय भाषाएँ: मलयालम, तेलुगु, तमिल, उड़िया, संस्कृत, कन्नड़ (जिनमें विगत 1500-2000 वर्षों में साहित्य की रचना हो रही है)। सर्वप्रथम 2004 में तमिल को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया, जबकि सबसे नवीनतम शास्त्रीय भाषा उड़िया है (2014 में)।

(9) नौवीं अनुसूची: इसे प्रथम संविधान संशोधन 1951 द्वारा जोड़ा गया। इसका संबंध भूमि (जमींदारी) सुधार कानूनों से है। अनुसूची 9 का संबंध अनुच्छेद 31(B) से है। अनुसूची 9 के तहत केंद्र और राज्य सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों को अदालती चुनौती से संरक्षण प्रदान करने का प्रावधान किया गया। प्रारंभ में 9वीं अनुसूची में 13 विषय शामिल किए गए थे, वर्तमान में इसमें 282 विषय हैं। आई.आर. कोएल्हो बनाम राज्य केरल वाद 2007 का संबंध 9वीं अनुसूची और अनुच्छेद 31(क) से है। इस वाद में सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय दिया कि यदि कोई विषय 24 अप्रैल, 1973 के पूर्व रखा गया है तो उसकी न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती, लेकिन यदि 24 अप्रैल, 1973 के बाद रखा गया है तो उसकी न्यायिक समीक्षा की जा सकती है यदि वह विषय मूल अधिकारों और आधारभूत ढांचे का उल्लंघन करता है। 9वीं अनुसूची जोड़ी गई उस समय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे।

(10) दसवीं अनुसूची: इसे 52वें संविधान संशोधन 1985 द्वारा जोड़ा गया (15 फरवरी, 1985 को हुआ और 1 मार्च, 1985 से लागू)। इसमें दल-बदल के आधार पर संसद और विधानसभा के सदस्यों की निरर्हता (अयोग्यता) के संबंध में उपबंध किए गए हैं। अनुसूची 10 का संबंध अनुच्छेद 102(2) और 191(2) से है।

  • दल-बदल रोकथाम अधिनियम 1985 के प्रमुख प्रावधान:
    • राजनीतिक दलों को संवैधानिक मान्यता दी गई।
    • निर्वाचित सदस्य:
      • यदि स्वेच्छा से पार्टी की सदस्यता त्याग देता है तो उसे अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
      • यदि पार्टी के दिशा-निर्देशों (व्हिप) की पालना नहीं करता तो उसे अयोग्य घोषित किया जा सकता है (यदि पार्टी 15 दिन में माफ नहीं करती है तो)।
      • यदि किसी पार्टी के दो-तिहाई से कम सदस्य दूसरी पार्टी में शामिल होते हैं तो उन्हें दल-बदल के आधार पर अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
    • निर्दलीय सदस्य: यदि किसी पार्टी की सदस्यता ग्रहण करता है तो उसे अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
    • मनोनीत सदस्य: प्रारंभ में 6 माह तक किसी भी पार्टी की सदस्यता ले सकता है, लेकिन उसके बाद किसी भी पार्टी की सदस्यता ग्रहण करता है तो उसे अयोग्य घोषित किया जा सकता है।

दल-बदल के आधार पर निर्णय लोकसभा अध्यक्ष और विधानसभा अध्यक्ष करते हैं। यदि कोई सांसद (MP) दल-बदल करता है तो लोकसभा अध्यक्ष (स्पीकर) उसे अयोग्य घोषित कर सकता है (अनुच्छेद 102)। यदि कोई विधायक (MLA) दल-बदल करता है तो विधानसभा अध्यक्ष (स्पीकर) उसे अयोग्य घोषित कर सकता है (अनुच्छेद 191)। किहोतो होलोहन बनाम जाचिल्लू वाद (18 फरवरी, 1992) का संबंध दल-बदल से है। इस वाद में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्पीकर का निर्णय अंतिम नहीं है, उसकी न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। यदि स्पीकर स्वयं दल-बदल कर लेता है तो सदन द्वारा निर्वाचित सदस्य उसकी अयोग्यता की जांच करता है। किसी पार्टी के एक-तिहाई सदस्य मिलकर नई पार्टी बना सकते हैं, यह प्रावधान 91वें संविधान संशोधन 2003 द्वारा समाप्त कर दिया गया। 52वें और 91वें संविधान संशोधन का संबंध दल-बदल से है। 10वीं अनुसूची जोड़ी गई उस समय प्रधानमंत्री राजीव गांधी और राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह थे।

(11) ग्यारहवीं अनुसूची: इसे 73वें संविधान संशोधन 1992 द्वारा जोड़ा गया, जो 24 अप्रैल, 1993 को लागू हुआ (इस समय प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव और राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा थे)। 11वीं अनुसूची में पंचायतीराज के कार्य, शक्तियों और प्राधिकार का उल्लेख है। 11वीं अनुसूची का संबंध अनुच्छेद 243(छ) से है। 11वीं अनुसूची में पंचायतीराज के 29 विषयों का उल्लेख है (विवरण ऊपर दिया गया है)।

पंचायतीराज:

  • 73वें संविधान संशोधन 1992 द्वारा संवैधानिक दर्जा दिया गया।
  • 24 अप्रैल, 1993 को लागू।
  • राज्य सूची का विषय।
  • भाग 9
  • अनुच्छेद 243 से 243(o) (कुल 16 अनुच्छेद)
  • अनुसूची 11 (243G)
  • 29 विषयों पर कानून बना सकती है।

(12) बारहवीं अनुसूची: इसे 74वें संविधान संशोधन 1992 द्वारा जोड़ा गया, जो 1 जून, 1993 को लागू हुआ (इस समय प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव और राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा थे)। 12वीं अनुसूची में नगरपालिकाओं के कार्य, शक्तियां और प्राधिकार का उल्लेख है। 12वीं अनुसूची का संबंध अनुच्छेद 243(ब) से है। 12वीं अनुसूची में नगरपालिकाओं के 18 विषयों का उल्लेख है (विवरण ऊपर दिया गया है)।

नगरपालिकाएँ:

  • 74वें संविधान संशोधन 1992 द्वारा संवैधानिक दर्जा दिया गया।
  • 1 जून, 1993 को लागू।
  • राज्य सूची का विषय।
  • भाग 9क
  • अनुच्छेद 243P से 243ZG (कुल 18 अनुच्छेद)
  • अनुसूची 12 (243W)
  • 18 विषयों पर कानून बना सकती है।

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