भारतीय संविधान: स्रोत और विशेषताएँ
भारतीय संविधान विश्व के विभिन्न संविधानों से प्रेरित एक जीवंत दस्तावेज है। इसमें विभिन्न देशों के संवैधानिक सिद्धांतों का समावेश है, जो इसे एक अनूठा और समावेशी चरित्र प्रदान करता है। यह लेख भारतीय संविधान के प्रमुख स्रोतों और विशिष्टताओं का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
संविधान के स्रोत
भारतीय संविधान के मूल्य और आदर्श विश्वभर के अनेक देशों के संविधानों से लिए गए हैं। यह “सार्वभौमिकतावाद” का प्रतिनिधित्व करता है, जो विभिन्न स्रोतों और परंपराओं को सम्मिलित करता है। संविधान निर्माताओं ने लगभग सभी सफल लोकतंत्रों से प्रावधानों को ग्रहण किया, जिसके कारण “आइवर जेनिंग्स” ने इसे “उधार का थैला” कहा है।
निम्न देशों के संविधानों से विभिन्न प्रावधान लिए गए हैं:
देश | प्रावधान |
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दक्षिण अफ्रीका | 1. संविधान संशोधन की प्रक्रिया (अनुच्छेद-368) 2. राज्यसभा के सदस्यों की निर्वाचन प्रणाली |
ऑस्ट्रेलिया | 1. समवर्ती सूची (अनुसूची-7, अनुच्छेद 246) 2. संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक का प्रावधान (अनुच्छेद-108) 3. व्यापार, वाणिज्य एवं समागम की स्वतंत्रता 4. उद्देशिका की भाषा |
फ्रांस | 1. स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व की अवधारणा (प्रस्तावना) 2. गणतंत्रात्मक व्यवस्था 3. तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति का प्रावधान (अनुच्छेद-127) |
आयरलैंड | 1. नीति-निर्देशक तत्व (भाग-4, अनुच्छेद 36 से 51) 2. राज्यसभा में राष्ट्रपति द्वारा 12 सदस्यों का मनोनयन (अनुच्छेद 80) 3. राष्ट्रपति का निर्वाचक मंडल (अनुच्छेद-54) |
कनाडा | 1. उच्चतम न्यायालय की परामर्शदात्री शक्ति (अनुच्छेद-143) 2. अवशिष्ट सूची (अनुच्छेद-248) 3. संघ सूची (अनुसूची-7, अनुच्छेद-246) 4. राज्यपाल की नियुक्ति की प्रक्रिया (अनुच्छेद-155) 5. संघात्मक व्यवस्था 6. राज्यपाल का विधेयक राष्ट्रपति के लिए आरक्षित रखना (अनुच्छेद-200) 7. सशक्त केंद्र के साथ संघीय व्यवस्था 8. “राज्यों के संघ” की परिकल्पना 9. केंद्र-राज्य संबंध 10. अर्धसंघात्मक सरकार |
अमेरिका | 1. जनहित याचिका 2. न्यायिक पुनरावलोकन 3. विधि का समान संरक्षण (अनुच्छेद-14) 4. राष्ट्रपति पर महाभियोग (अनुच्छेद-61) 5. वित्तीय आपातकाल के प्रभाव (अनुच्छेद-360) 6. मूल अधिकार (भाग-3, अनुच्छेद 12 से 35) 7. उपराष्ट्रपति का पद (अनुच्छेद-63) 8. न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया (अनुच्छेद 124(4)) 9. उद्देशिका का विचार 10. न्यायपालिका की सर्वोच्चता/स्वतंत्रता 11. सेनाओं का सर्वोच्च कमांडर राष्ट्रपति 12. संविधान की सर्वोच्चता 13. निर्वाचित राष्ट्रपति |
ब्रिटेन | 1. एकल नागरिकता (भाग-2, अनुच्छेद 5 से 11) 2. विधि के समक्ष समानता (अनुच्छेद-14) 3. संसदीय प्रणाली 4. मंत्रिमंडलीय व्यवस्था 5. द्विसदनात्मक व्यवस्था 6. संसदीय विशेषाधिकार 7. महान्यायवादी का पद (अनुच्छेद-76) 8. विधि निर्माण प्रक्रिया 9. फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम 10. विधायिका में अध्यक्ष की भूमिका 11. परमाधिकार लेख 12. औपचारिक प्रधान राष्ट्रपति 13. सामूहिक उत्तरदायित्व |
जापान | विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया (अनुच्छेद-21) |
रूस | 1. मूल कर्तव्य (भाग-4क, अनुच्छेद-51क) 2. सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक न्याय 3. पंचवर्षीय योजना |
जर्मनी | आपातकाल में मूल अधिकारों का निलंबन (अनुच्छेद 358, 359) |
1935 का अधिनियम | 1. प्रांतीय लोक सेवा आयोग 2. राज्यपाल का कार्यालय 3. संघीय व्यवस्था के कुछ प्रावधान 4. आपातकाल के कुछ प्रावधान 5. न्यायपालिका के प्रावधान 6. शक्तियों के वितरण की तीन सूचियां |
संविधान की विशेषताएँ
1. लिखित एवं विस्तृत संविधान
भारतीय संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। यह अमेरिकी संविधान की तरह संविधान सभा द्वारा निर्मित एवं लिखित है। मूल संविधान में 395 अनुच्छेद, 22 भाग और 8 अनुसूचियां थीं। वर्तमान में (मार्च 2023 की स्थिति अनुसार) 468 अनुच्छेद (संख्यांक 395), 25 भाग (संख्यांक 22) और 12 अनुसूचियां हैं। भारतीय संविधान की जटिलता के कारण “आइवर जेनिंग्स” ने इसे “वकीलों का स्वर्ग” कहा है।
2. संविधान की प्रस्तावना
इसमें जनता की भावनाएँ और आकांक्षाएँ मुख्य रूप से समाविष्ट हैं। “अर्नोल्ड बाकर” के अनुसार, प्रस्तावना संविधान निर्माताओं के विचारों को जानने की कुंजी है।
3. सम्प्रभुता सम्पन्न लोकतांत्रिक गणराज्य
भारत एक सम्प्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य है। इसका अर्थ है कि भारत अपनी आंतरिक और विदेश नीति स्वयं निर्धारित करता है और किसी बाहरी शक्ति के नियंत्रण में नहीं है। “लोकतांत्रिक” होने का तात्पर्य है कि भारत का शासन जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों द्वारा चलाया जाता है, और “गणराज्य” का अर्थ है कि भारत का राष्ट्राध्यक्ष (राष्ट्रपति) वंशानुगत नहीं, बल्कि निर्वाचित होता है।
4. संसदीय सरकार
भारत में संसदीय शासन प्रणाली ब्रिटेन के वेस्टमिंस्टर मॉडल पर आधारित है। इसका अर्थ है कि सरकार संसद के प्रति उत्तरदायी होती है और संसद द्वारा उसे हटाया जा सकता है। इस व्यवस्था में दोहरे प्रमुख होते हैं – राष्ट्रपति, जो नाममात्र का प्रमुख होता है, और प्रधानमंत्री, जो वास्तविक प्रमुख होता है। मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है।
5. मूल अधिकार
भाग-3 (अनुच्छेद 12 से 35) में मूल अधिकारों का उल्लेख है, जो नागरिकों को कुछ बुनियादी अधिकार प्रदान करते हैं। ये अधिकार न्यायालय द्वारा संरक्षित हैं और इनका उल्लंघन होने पर नागरिक न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं.
6. राज्य के नीति-निर्देशक तत्व
भाग-4 (अनुच्छेद 36 से 51) में राज्य के नीति-निर्देशक तत्वों का उल्लेख है। ये तत्व सरकार के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत हैं, जिनका उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक न्याय सुनिश्चित करना है. हालाँकि, ये वादयोग्य नहीं हैं, अर्थात इनके उल्लंघन पर न्यायालय में मुकदमा नहीं दायर किया जा सकता.
7. एकीकृत एवं स्वतंत्र न्यायपालिका
भारत में एकीकृत और स्वतंत्र न्यायपालिका है, जिसका शीर्ष पर उच्चतम न्यायालय है. यह संविधान और मूल अधिकारों का संरक्षक है. न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए संविधान में विशेष प्रावधान हैं.
8. संसदीय सर्वोच्चता और न्यायिक सर्वोच्चता का समन्वय
भारतीय संविधान संसदीय सर्वोच्चता और न्यायिक सर्वोच्चता के बीच संतुलन बनाता है. संसद को कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन न्यायपालिका संविधान के अनुरूप कानूनों की समीक्षा कर सकती है.
9. कठोर एवं लचीला संविधान
भारतीय संविधान कठोर और लचीलेपन का मिश्रण है. संविधान संशोधन की प्रक्रिया जटिल है, लेकिन कुछ प्रावधानों को साधारण बहुमत से संशोधित किया जा सकता है.
10. एकल नागरिकता
भारत में एकल नागरिकता का प्रावधान है, अर्थात प्रत्येक नागरिक केवल भारत का नागरिक होता है, न कि किसी राज्य विशेष का.
11. वयस्क मताधिकार
18 वर्ष या उससे अधिक आयु के सभी नागरिकों को मतदान का अधिकार है.
12. केन्द्रोमुख संविधान (सशक्त केंद्र)
भारतीय संविधान में केंद्र सरकार को अधिक शक्तियां प्राप्त हैं, विशेषकर आपातकाल के दौरान.
13. पंथनिरपेक्ष राज्य
भारत एक पंथनिरपेक्ष राज्य है, अर्थात राज्य सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार करता है और किसी एक धर्म को राजकीय धर्म का दर्जा नहीं देता.
14. समाजवादी राज्य
संविधान में समाजवादी आदर्शों को शामिल किया गया है, जिसका उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक समानता को बढ़ावा देना है.
15. मूल कर्तव्य
भाग-4क में नागरिकों के मूल कर्तव्यों का उल्लेख है, जो उन्हें अपने देश और समाज के प्रति उनके दायित्वों की याद दिलाते हैं.
16. अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा
संविधान अल्पसंख्यक समुदायों के हितों की रक्षा के लिए विशेष प्रावधान करता है, जैसे उनकी भाषा, लिपि और संस्कृति को संरक्षित रखने का अधिकार.
17. विधि का शासन
भारत में विधि का शासन सर्वोपरि है, अर्थात सभी नागरिक और सरकारी संस्थाएं कानून के अधीन हैं.
18. त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था
73वें और 74वें संविधान संशोधन द्वारा स्थानीय स्वशासन को मजबूत किया गया है, जिससे त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था स्थापित हुई है.
19. संवैधानिक सरकार
भारत में संवैधानिक सरकार है, जिसका अर्थ है कि सरकार की शक्तियां संविधान द्वारा परिभाषित और सीमित हैं.
20. अर्धसंघात्मक संविधान
भारतीय संविधान संघात्मक और एकात्मक लक्षणों का मिश्रण है, जिसे अर्धसंघात्मक कहा जाता है.
इस प्रकार, भारतीय संविधान विभिन्न स्रोतों से प्रेरित एक गतिशील दस्तावेज है, जिसमें कई अनूठी विशेषताएं हैं जो भारत की शासन व्यवस्था को आकार देती हैं।